यह उन दिनों की बात है ।

मैं बचपन को बुला रही थी
बोल उठी बिटिया मेरी
नंदनवन सी फूल उठी


यह छोटी सी कुटिया मेरी ।
मां ओ कह कर बुला रही थी
मिट्टी खा कर आई थी ।
कुछ मुंह में कुछ लिए हाथ में
मुझे खिलाने आई थी ।

सुभद्रा कुमारी चौहान की यह पंक्तियां पढ़कर मुझे अपना बचपन याद आया । जब हम बच्चे थे उस समय बच्चों को खेलने को बहुत समय मिलता था । विद्यालय पढ़ने भी जाते थे घर पर भी पढ़ते थे । फिर भी सर्दियों में शाम 4:00 से 6:00 और गर्मियों में पांच से सात खेलने का समय निश्चित था ।

सारी कॉलोनी के बच्चे इकट्टे हो जाते । कभी छुपन छुपाई खेलते ,कभी गिट्टी फोड़ खेलते, कभी कंचे खेलते ,कभी गिल्ली डंडा , कभी स्टापू खेलते ,कभी गुड़िया की शादी होती । कुछ बच्चे बराती बनते कुछ घराती । नमकीन, बिस्किट ,शरबत से बरात का स्वागत होता । उसके बाद गुड़िया की शादी संपन्न होती ।

कभी बैडमिंटन भी खेलते लड़के क्रिकेट खेलते । कभी फुटबॉल खेलते।

उस समय लैंडलाइन फोन घर पर हुआ करता था । फोन पर बात करना महंगा था । कॉल बुक करके 3 मिनट या 6 मिनट ही बात कर सकते थे ।

हम लोग स्टील के टिफिन में खाना लेकर विद्यालय जाते थे । सब्जी लेने लोग थैला लेकर जाते थे । आज की तरह प्लास्टिक के टिफिन ,पॉलिथीन तब नहीं थे । उस समय नल में साफ पानी आता था ।उसे ही नल में हाथ लगाकर पी लेते थे । पानी की बोतल नहीं खरीदनी पड़ती थी ।

घर में पूरी ,कचोरी, समोसे ,पकोड़े सब बनते हम सब बच्चे आराम से खाते और खेल कूद कर सब हजम कर लेते । हेल्दी डाइट किस चिड़िया का नाम है हम बच्चों को पता नहीं होता था ।

जब गर्मी की छुट्टियां होती थी नानी के घर जाते थे । वहां पर सभी बहन भाई ममेरे, मौसेरे खूब मजे करते । शाम को फल खाने की शर्त लगती । नाना जी सुबह फल मंगा कर पानी में डलवा देते । शाम को फल काटकर सभी बच्चों को देते । रोज अलग-अलग फल होते । तरबूज ,खरबूज , आम ,अनार आदि ।

गर्मी की दोपहर में हम सब बच्चे लूडो , ताश , कैरम खेलते । कभी कहानियां पढ़ते । रात को सोने के लिए छत पर जाते । नानी सभी बच्चों को कहानी सुनाती । हम सब कहानी सुनकर सो जाते ।

गलती होने पर मम्मी पापा डांट लगाते । विद्यालय में गृह कार्य करके न लाने पर शिक्षिका डांटती लेकिन कभी किसी बच्चे को इस वजह से तनाव नहीं हुआ । बोर और तनाव शब्द हमने आम बोलचाल में नहीं सुने थे ।

आज के बच्चे उनका बचपन हमसे बहुत अलग है । आज के बच्चे गैजेट्स पर सोशल साइट्स पर बहुत व्यस्त हैं । उनके अच्छे दोस्त कितने हैं उन्हें नहीं पता । आज के बच्चों पर अच्छा कैरियर बनाने का प्रेशर भी रहता है । माता-पिता भी चाहते हैं । बच्चा पढ़ाई के अलावा कुछ और भी सीखे । संगीत, नृत्य, कला ,जूडो, कराटे ,खेल आदि ।

आज हर घर में तीन-चार मोबाइल तो है ही । बहुत से बच्चे ऐसी जगह रहते हैं जहां पार्क घर से दूर है । तब मम्मी बच्चों को पार्क लेकर जाती हैं । जहां बच्चे अपने हमउम्र बच्चों के साथ खेलते हैं ।

आज भी बच्चे नानी के यहां गर्मी की छुट्टियों में जाते हैं । मामा ,मौसी के बच्चे भी आते हैं । सब मिलकर खेलते कूदते हैं । उन्हें बीच-बीच में कहना पड़ता है । अब ताश या लूडो या कैरम खेलो ।

नानी से बच्चे अब कहानी नहीं सुनते । अब कोई छत पर नहीं सोता । सब कमरों में ही सोते हैं । शाम को कभी फल कभी आइसक्रीम कभी पिज्जा खाते हैं । पूरी ,कचोरी ,समोसे , पकोड़े को तला भुना कहने वाले बच्चे पिज्जा , बर्गर बड़े शौक से खाते हैं ।