पिता का प्यार

विजय और सविता अच्छे माता पिता थे । उनके दो बच्चे थे । बेटा समर और बेटी नेहा। उनका परिवार खुशहाल था । विजय जी बैंक में मैनेजर थे । सविता विद्यालय मैं शिक्षिका थी । समर आठवीं कक्षा में था नेहा छठी कक्षा में थी । दोनों बहन भाई आपस में कभी लड़ते, कभी खेलते ।

जब समर और नेहा की लड़ाई होती । सविता हमेशा दोनों को डांट लगाती। विजय जी सिर्फ समर को डांटते नेहा से कुछ नहीं कहते। इससे समर को लगता पापा मुझे प्यार नहीं करते, नेहा को ही प्यार करते हैं। सविता जी अकेले में विजय को समझाती। आप नेहा को क्यों नहीं डांटते ? आप जब भी डांटो दोनों बच्चों को डांटो।

इसी तरह लड़ते झगड़ते खेलते कूदते 4 साल बीत गए । समर इस बार 12वीं मैं था, नेहा दसवीं कक्षा में थी । दोनों बच्चों की बोर्ड परीक्षा होनी थी। समर और नेहा दोनों पढ़ने में अच्छे थे । समर इंजीनियर बनना चाहता था और नेहा डॉक्टर । दोनों की परीक्षा हो गई और रिजल्ट आ गया । दोनों के अच्छे नंबर आए थे । समर का दाखिला इंजीनियरिंग कॉलेज में हो गया । नेहा 11वीं मैं आ गई । नेहा मेडिकल परीक्षा की तैयारी भी कर रही थी ।

नेहा ने 12वीं की परीक्षा के साथ मेडिकल प्रवेश परीक्षा भी दी । नेहा के 12वीं की परीक्षा में अच्छे अंक आए । उसका मेडिकल कॉलेज में दाखिला हो गया । अब समर और नेहा अपनी अपनी पढ़ाई में व्यस्त हो गए । उनकी मम्मी सविता को लगता अब तो बच्चों के पास मेरे लिए वक्त ही नहीं है । जब वह यह बात बच्चों को बताती वह दोनों कहते मम्मी आप अपनी हॉबीज को पूरा करो । सविता को किताबें पढ़ने का शौक था । वह अब खाली समय में किताबें पढ़ने लगी ।

इस तरह 3 साल कब बीत गए पता ही नहीं चला ।समर की इंजीनियरिंग पूरी हो गई । उसका केंपस सिलेक्शन भी हो गया । जब वह अपने जॉब पर जा रहा था तो उसे गले लगाते हुए उसके पिता विजय ने कहा जाओ बेटा यहां की चिंता मत करना मैं हूं ना । समर ने अपनी मम्मी ( सविता) से कहा आज मुझे लगा पापा मुझे भी प्यार करते हैं, नहीं तो मुझे लगता था पापा नेहा से ज्यादा प्यार करते हैं ।

सविता ने समर से कहा बेटा तुम्हारे पापा तुमसे बहुत प्यार करते हैं । तुम्हें ऐसा क्यों लगता था ? वह तुमसे प्यार नहीं करते । समर ने कहा पापा नेहा को कभी नहीं डांटते थे । हमेशा मुझे ही डांटते थे । सविता ने कहा हम दोनों तुम्हें और नेहा को बराबर प्यार करते हैं । आगे से ऐसा कभी मत सोचना ।