डर का सामना

हम सब कभी ना कभी डरे हैं और फिर हिम्मत करके हमने डर का सामना किया है ।

जब मैं छोटी थी । करीब 13 वर्ष की । तब यदि मैं बाजार में या कहीं भी कोई अंतिम संस्कार के लिए जाती हुई लाश देख लेती थी । तो मुझे बहुत डर लगता था । रात में नींद नहीं आती थी । ऐसा लगता था लाश यहाँ खड़ी है । खिड़की में से झांक रही है ।

फिर  मेरे पापा का स्थानांतरण दूसरे शहर में हो गया । जहां हमारा घर था । वहाँ से विद्यालय 5 किलोमीटर दूर था । यहां पर हमारा घर ऊपर का था । घर से विद्यालय जाने के रास्ते में शहर का पोस्टमार्टम कार्यालय पड़ता था । अब तो रोज ही मुझे लाश देखने को मिलती थी । मुझे रात में नींद नहीं आती थी ।

कुछ दिनों बाद मैंने अपने को समझाया । यह तो ऊपर का घर है । यहाँ  खिड़की से लाश कैसे झांक सकती है ? घर में कोई कैसे आ सकता है ? धीरे-धीरे मेरा डर दूर हो गया ।

जब मेरे अंदर आत्मविश्वास आया । तो मेरा डर अपने आप भाग गया । इस तरह मैंने अपने डर का सामना किया ।