रीमा की हिम्मत

आज मैं बाजार गई तो एक दुकान में मेरी नजर रीमा पर पड़ी । कॉलेज के समय वह मेरी अच्छी दोस्त थी । लेकिन ना जाने क्यों उसने अपनी शादी के बाद हम सब सहेलियों से दूर होना ही सही समझा ।  पहले मैंने सोचा उसे आवाज दूं । तब तक उसने मुझे देख लिया और मुस्कुराने लगी । मैंने उससे पूछा कैसी हो ?चलो पास में कॉफी शॉप में चल कर बैठते हैं ।

जब हम बैठे तो मैंने कहा कहां गायब थी ?बहुत सालों बाद दिखी । उसने बताया उसकी शादी उसके लिए एक सजा थी । उसका पति अच्छा नहीं था शक्की मिजाज का था । मैं जब भी किसी से बात करती वह गुस्सा करता । खुद सब से बात करता था । मुझे बंधनों में रखता था । इसलिए धीरे-धीरे मैं सबसे दूर हो गई ।

शादी के 2 साल बाद मेरा बेटा हुआ मैं सोचती अब हालात सुधरेंगे । लेकिन ऐसा कुछ भी नहीं हुआ हालात और बिगड़ते गए । अब वह मुझ पर हाथ भी उठाने लगा । तब मेरे सहन करने की सीमा समाप्त समाप्त हो गई । तब मैंने उससे अलग होने के बारे में सोचा । लेकिन उससे पहले मुझे अपने पैरों पर खड़ा होना था । क्योंकि पुरानी सोच के चलते मेरे माता-पिता भी मुझे उससे अलग ना होने की सलाह दे रहे थे ।

कुछ महीनों की मेहनत के बाद मुझे एक अच्छे प्राइवेट स्कूल में नौकरी मिल गई तो मैंने उसका घर छोड़ दिया । मैंने उसे तलाक देने के लिए अर्जी कोर्ट में दाखिल की । उसने मुझे इस शर्त पर तलाक दिया कि मैं उससे गुजारा भत्ता नहीं मांगूंगी और वह बेटे पर कोई हक नहीं जताएगा । बेटे की कस्टडी मुझे मिल गई ।

मुझे खुश देखकर मेरे माता-पिता भी खुश हैं  और मेरे साथ हैं । अब मैं 2 वर्ष से सुकून की जिंदगी बिता रही हूं ।

मैंने उससे कहा मुझे उस पर गर्व है । उसने कोई सहारा ना होते हुए भी अपने जीवन में आने वाली कठिनाइयों का डटकर मुकाबला किया ।