हम कोटा से दिल्ली जाने के लिए रेल में चढ़े, जब मैंने सामान रखना शुरू किया तो देखा एक सूटकेस सीट के नीचे रखा हुआ है ।
आस पास बैठे लोगों से पूछा किसका है सभी ने मन किया हमारा नहीं है । आस पास के बाद डिब्बे में अन्य सीटों पर बैठे लोगों से पूछा यह सूटकेस किसका है? सभी ने कहा हमारा नहीं है । एक सरदार जी सो रहे थे, रेल के वातानुकूलित डब्बे में एक कोच अटेंडेंट होता है, मैंने उससे जाकर कहा की हमारी सीट के नीचे एक लावारिस सूटकेस रखा है आकर देखो किसका है उसे वहां से हटाओ ।
कोच अटेंडेंट आया उसने सब से पूछा, सभी ने मन किया हमारा नहीं है। उसने सरदारजी को जगा कर पूछा, आपने अपना सूटकेस दूसरी सीट के नीचे तो नहीं रख दिया? सरदारजी ने कहा नहीं फिर सो गए।
रेल कोटा स्टेशन से चल दी थोड़ी देर में टीटी महोदय आ गए। मैंने उनसे कहा यहां पर एक लावारिस सूटकेस है आप इसको यहां से हटवाएं। टीटी और अटेंडेंट बात करने लगे, कोई उस सूटकेस को हाथ नहीं लगाना चाहता था। डब्बे में सभी लोग डरने लगे कहीं सूटकेस में बम न हो ।
तभी रेल में चलने वाले पुलिस कर्मी आ गए। टीटी ने उन्हें सूटकेस के बारे में बताया, उन्होंने सब से पूछा सभी ने कहा हमारा सूटकेस नहीं है। तभी पुलिस कर्मिं ने सरदारजी को उठा कर बिठा दिया और उनसे पूछा सूटकेस आपका है? पहले तोह उन्होंने मन किया मेरा नहीं है। फिर कहने लगे मेरा है, पुलिस कर्मी ने कहा “यहाँ एक घंटे से सब परेशान है आपको सोने से फुरसत नहीं है, यदि आपका सूटकेस है तो खोल के दिखाओ!”
सरदारजी ने चाभी निकाल कर सूटकेस खोल कर दिखाया उसमे उनका सामान था। सभी ने राहत की सांस ली। कोच अटेंडेंट ने सरदारजी से कहा “आपसे पहले भी पूछा था तब आपने मना क्यों किया?” सरदारजी ने कहा “नींद में ध्यान नहीं रहा। “
टीटी ने सरदारजी से कहा ” आपने अपना सूटकेस अपनी सीट के नीचे क्यों नहीं रखा?” सरदारजी ने कहा ” मैंने सोचा सामने सूटकेस दिखता रहेगा।”
सरदारजी ने सभी से माफ़ी मांगी। सभी यात्री सोने की तैयारी करने लगे।