ऑटो लॉक

जब हम कलकत्ता में रहते थे । उस कॉलोनी के सभी फ्लैट के मुख्य दरवाजे में ऑटो लॉक (यानी अपने आप बंद हो जाने वाला ताला ) लगे हुए थे । वहां हर हफ्ते किसी ना किसी के फ्लैट का दरवाजा ऑटो लॉक की वजह से बंद हो जाता था । फिर शुरू होती थी उसे खोलने की कवायद । कैसे खोले? क्या करें ? कुछ सोसाइटी में काम करने वाले कर्मचारी इस काम में दक्ष हो गए थे। वह लॉक खोल देते थे ।

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मन की आवाज़

रीमा आज बहुत उदास थी | उसे समझ नहीं आ रहा था वह क्या करें? एक तरफ उसका बेटा था दूसरी और तथाकथित समाज| उसने अपने बेटे का इंजीनियरिंग में दाखिला करवाया था | शुरू में तो बेटा खुश था | लेकिन उसके नंबर अच्छे नहीं आए थे | उसके कॉलेज से फोन आया था | उन्होंने रीमा को कॉलेज बुलाया था |

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सपनों की उड़ान

सविता और नीना दो बहने थी दोनों ही अपने सपनों को पूरा करना चाहती थी| उनके सपनों को पूरा करने में उनके माता-पिता भी उनका साथ देते थे| उनका परिवार एक मध्यमवर्गीय परिवार था| उनके पिता एक अध्यापक थे मां एक कुशल ग्रहणी| दोनों बहनों को यह बात पता थी की सीमित साधनों में ही हमें अपने सपने पूरे करने होंगे| पढ़ना जारी रखें “सपनों की उड़ान”

सूटकेस बम

हम कोटा से दिल्ली जाने के लिए रेल में चढ़े, जब मैंने सामान रखना शुरू किया तो देखा एक सूटकेस सीट के नीचे रखा हुआ है ।

आस पास बैठे लोगों से पूछा किसका है सभी ने मन किया हमारा नहीं है । आस पास के बाद डिब्बे में अन्य सीटों पर बैठे लोगों से पूछा यह सूटकेस किसका है? पढ़ना जारी रखें “सूटकेस बम”